आओ कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाएँ | Let’s Make Kashmir a Paradise Again

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कश्मीर में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए एक समग्र और बहु-आयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ ही कश्मीर में स्थायी शांति को बल मिल सकता है। मानव मूल्यों के आधार पर एक ही दृष्टिकोण के साथ, उन्हें परस्पर बातचीत शुरू करनी होगी।

इस प्रकार की पहल करने के दृष्टिकोण के साथ, आर्ट ऑफ़ लिविंग ने जम्मू में पिछले सप्ताह “कश्मीर: स्वर्ग की वापसी” सम्मेलन का आयोजन किया।

कश्मीर के नब्बे प्रतिशत लोग शांति के इच्छुक हैं। पिछले कुछ महीनों में मैं कश्मीरी समाज के सभी वर्गों के लोगों के साथ लगातार संपर्क में रहा हूँ। वहाँ का हर व्यक्ति आतंकवाद से राहत व शांति चाहता है।

हड़ताल और कर्फ्यू के बीच फंसे, सामान्य स्थिति की बहाली के लिए बेताब लोग अपने बच्चों के लिए शिक्षा चाहते हैं, लेकिन सशस्त्र आतंकवादियों और उन्हे बढ़ावा देने वाले लोगों से डरते हैं। मुट्ठी भर लोग घाटी में खून बहा रहे हैं, उन्हें ऐसे कुछ लोगों द्वारा निहित स्वार्थों के लिए भड़काया जाता है, जो कश्मीर की समस्या का समाधान चाहते ही नहीं, क्योंकि संघर्ष उनके लिए कमाई का जरिया बन गया है।

हमें इन भड़काए गए लोगों को प्रेरित करने के लिए एक आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इसके लिये पुरानी नीतियाँ अब काम नहीं करेंगी। कश्मीर को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने लिए लीक से हटकर सोचने की जरूरत है।

इमामों से लेकर सूफी संतों तक, बुद्धिजीवियों से लेकर नौकरशाहों तक, बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक एक ऐसी विशाल जनसंख्या है, जो शांति के लिए काम करना चाहते हैं। यद्यपि ये लोग शांति स्थापित करने में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं, तथापि उन्हें अब तक नजरअंदाज करके हाशिए के बाहर रखा गया है।

इसे ध्यान में रखते हुए हमने जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े हुए लोगों की आवाज को एक मंच पर लाने के लिए दक्षिण एशिया फोरम फॉर पीस की शुरुआत की है।

यह फोरम उन लोगों की आवाज बुलंद करने के लिए मंच प्रदान करेगा, जिनकी आवाज अभी तक अनसुनी ही रही है, साथ ही अमन और शांति कायम करने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। जब हमारे पास इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए पर्याप्त संख्या में प्रेरित लोग हो जाएँगे, तब हम इस क्षेत्र में अपने रचनात्मक कार्यक्रमों को बहुत आगे तक ले जा सकेंगे।

किसी भी संघर्ष में हम यही देखते आ रहे हैं कि लोगों में विश्वास की बहुत कमी हो जाती है। कश्मीर में लोग सरकार, व्यवस्था या सामाजिक संगठनों पर भरोसा नहीं करते। हम इस कमी को दूर करने और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच अंतर को कम करने की दिशा में काम करेंगे।

मेरा दृष्टिकोण विश्वास और समझौते का वातावरण बनाने का है, जिसमें सभी हितधारक शांति, निष्पक्षता, सामाजिक समानता, सद्भाव और भाईचारे के साझा मूल्यों के साथ विचार विमर्श कर सकते हैं। लंबे अरसे से बयानबाजी और नारेबाजी चल रही है, जिससे किसी का भला नहीं हुआ है। हमें किसी भी विचारधारा का कैदी नहीं बनना चाहिए; इसकी अपेक्षा हमें एक नवीन विचारधारा तैयार करनी चाहिए, जो सभी को शांति की दिशा में आगे बढ़ा सके।

हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि इस समस्या का कोई पूर्वनिर्मित समाधान नहीं है। यह समाधान न तो सड़कों पर मिलेगा, न ही पत्थर और बंदूकों से कुछ हल निकलेगा। कश्मीर के लोगों की विचारधारा और निष्ठा के साथ, कश्मीर की समस्या का समाधान उन लोगों से ही मिलेगा।

कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए युवाओं को उग्रवाद तथा व्यसनों से दूर रहने के लिए प्रशिक्षित करने के साथ, उनमें आत्मविश्वास पैदा करके, सद्भावना की पहल करनी होगी। इन सब उपायों से ही कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए एक दूरगामी स्थायी कार्यक्रम बनाया जा सकता है। आतंकवाद मानवता के मूल्यों, कश्मीरियों की मूल भावना और सूफीवाद की शिक्षाओं के खिलाफ है। हिंसा के कारण लोगों के कटु अनुभव और मानसिक आघात को ठीक करने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग वर्षों से प्रयासरत है।

“कश्मीर: स्वर्ग की वापसी” सम्मेलन को मिली जबरदस्त सकारात्मक प्रतिक्रियाओं ने मुझे विश्वास दिला दिया है कि, मानव मूल्यों की राजनीति पर विजय होगी । हमें सूफी नेताओं और युवाओं से बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया मिली, जिस में से कई सम्मेलन में भाग लेने के लिए गांवों से 10-12 घंटे की यात्रा करके आये थे। महिलाओं और बुजुर्गों ने भी अद्भुत उत्साह के साथ भाग लिया। सम्मेलन स्थल इस प्रकार खचाखच भरा हुआ था कि बहुत से लोग उसके बाहर भी बैठे हुए थे।

शांति के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए हम इस प्रकार का सम्मेलन घाटी में भी जल्दी ही करेंगे।

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