पुनर्विचार का समय : भगवे की लहर तथा धर्मनिरपेक्षता का पतन | Time to Rethink : Saffron Surge and the Secular Debacle
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“जो दिखाई देता है वह नहीं है और जो दिखाई नहीं देता वह है”, यह पुरानी कहावत है, जो कि भारतीय राजनीति का बहुत सही प्रतिपादन करती है। कांग्रेस के नेतृत्व में यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (यूपीए) स्वयं को धर्मनिरपेक्ष साबित करने की कोशिश करती है, परंतु यदि उसकी कुछ परते खोलें तो उसकी गहराई में जातिवाद दिखाई देगा। दूसरी तरफ बीजेपी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए), जिस पर जातिवादी पार्टी होने का आरोप लगाया जाता है, वह इस लेबल को स्वयं पर से हटाने के लिए अतिरिक्त प्रयास और भरसक कार्य कर रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि घोटाले, महंगाई, बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार, औद्योगिक विकास की गिरावट (+१०% से – २.५%) और बेरोजगारी की बहुत बड़ी भूमिका है, परंतु इन सबसे ऊपर यूपीए का मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति अत्यधिक झुकाव उनकी पराजय का मुख्य कारण बना।
भारत तथा विशेषतः हिंदू अधिकतर धर्मनिरपेक्ष हैं, इन चुनावों में हिंदुओं ने उन दलों को मत नहीं दिया जो कि धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करती थीं। चुनावों में लोगों ने जातिवाद के दलदल की बार–बार डराने वाली मनोविकृति को उखाड़ फेंका। शायद कांग्रेस को बिल्कुल अपेक्षा नहीं थी कि सब हिंदू बहुसंख्यक संगठित होकर एक आवाज में मतदान करेंगे, क्योंकि कांग्रेस ने हमेशा भाषावाद व जातिवाद के आधार पर लोगों को विभाजित किया है।
डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालते ही साफ तौर पर घोषणा कर दी थी कि भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है; इस घोषणा ने हिंदुओं की भावनाओं पर ठेस पहुंचाई, खासतौर से उन हिंदुओं के जो कि कांग्रेस के साथ खड़े थे। प्रधानमंत्री ने केवल एक बार ही नहीं बल्कि पूरे कार्यकाल में बहुसंख्यक समुदाय की उदारता को स्वीकार नहीं किया। बहुत लोगों को शिकायत है कि उनके साथ गौरव पूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता जबकि अल्पसंख्यकों को करोड़ों रुपयों की रियायतों के प्रलोभन दिए गए।
विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों को कहा गया था कि अल्पसंख्यक छात्रों के बैंकखाते खोल कर उन के माध्यम से उन्हें छात्रवृत्ति दी जाएं। कुछ राज्यों में जहां पर यूपीए संगठन की सरकार थी वहां पर बच्चों को ₹ ३०,००० दिए जाते थे, केवल इस आधार पर कि वह अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। इस भेदभाव के कारण कक्षा के अन्य बहुसंख्यक गरीब बच्चों के मन पर बुरा असर हुआ। हालांकि, यह सुविधाएं जम्मू कश्मीर व उत्तर पूर्वी राज्यों के हिंदू अल्पसंख्यकों को नहीं दी गई। गरीबी और निरक्षरता किसी धर्म तक सीमित नहीं है – प्रत्येक धर्म में गरीब लोग हैं। केवल धर्म के आधार पर सुविधाएं देना असंवैधानिक है और राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे भेदभाव ने लोगों में आक्रोश भर दिया। आइ पी एस के दो सेवानिवृत्त अधिकारियों (श्रीराम कुमार ओहरी तथा श्री जय प्रकाश शर्मा) द्वारा लिखित अनुसंधान दस्तावेज ‘द मेजोरिटी रिपोर्ट’ (बहु संख्यकों पर सूचना) में इस विषय पर रोचक सूचनाएं उपलब्ध हैं।
यूपीए द्वारा लिए गए कई निर्णय भारतीय लोकतांत्रिक ढांचे की नींव के लिए घातक थे। प्रधानमंत्री पद के सही उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को नजरअंदाज कर दिया गया। पी.जे. थॉमस के खराब रिकार्ड को अनदेखा कर केंद्रीय सतर्कता आयुक्त नियुक्त किया गया। विजयी गठबंधन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बहुत कम आदर दिया। सरकारी शासकीय तंत्र में केंद्रीय अन्वेक्षण ब्यूरो तथा प्रबंध विभाग को हथियार बनाकर इनके माध्यम से कई प्रतिरोधी राजनीतिक कार्य किए। प्रथम परिवार सारे संभव अवसरों व लाभों को लेने में आगे रहता था तथा प्रधानमंत्री पद की गरिमा को गिरा रहा था, जिस से जनता हैरान थी। कांग्रेस में कई सच्चे तथा अच्छे इरादे वाले मंत्री थे, वे सब घुटन अनुभव करने लगे, उदास तथा निरुत्साहित हो गए। क्योंकि सभी राजकीय नीतियों को बनाने के लिए कुछ सीमित लोगों का एक दल ही सब निर्णय लेने लगा।
प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा बिल में यह परिकल्पित किया गया कि सारी हिंसात्मक कार्यवाहियों के पीछे हमेशा बहुसंख्यक समाज है और इस समाज के सदस्यों को गैरजमानती वारंट के साथ गिरफ्तार किया जा सकता है। यूपीए ने ऐसे कई भेदभाव पूर्ण कानून बनाए। यूपीए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को कहा कि वह धार्मिक अल्पसंख्यकों को उदारता से ऋण दें या उनका ऋण माफ कर दें।
यूपीए के समय भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा हो गई तथा परिस्थिति इतनी अधिक शर्मनाक हो गई, जिसको छुपाना कठिन हो गया। महत्वपूर्ण कार्यालयों से बहुत सी फाइलें गायब हो गई। ऐसा प्रतीत होता है कि आग को कांग्रेस सरकार की फाइलों से खास आत्मीयता थी। आखरी आगजनी का मामला कांग्रेस कार्यकर्ताओं के कार्यालय को छोड़ने के आखिरी दिन पर हुआ।
यूपीए सरकार ने भारतीय प्रकृति की भी निरन्तर उपेक्षा की। भारत में अति प्राचीन समय से गाय को पवित्र माना जाता है, वही भारत चुपचाप गोमांस का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। यह कुख्यात घटना एक बड़े झटके की तरह भारतीयों के सामने आई। गौमांस के निर्यातकों को खुली छूट दी गई जबकि हमारे किसान आत्महत्या कर रहे थे।
बहुत से अल्पसंख्यक धार्मिक नेता अक्सर यूपीए के नेताओं के साथ दिखाई देने लगे, और हिंदू संतों की अवहेलना की गई। हालांकि अल्पसंख्यकों को अपने पूजा के स्थानों को चलाने की पूरी छूट दी गई जबकि हिंदुओं के मंदिरों को सरकार के नियंत्रण में ले लिया गया।
पूरा देश इस बात का साक्षी है कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कितना भेदभाव किया गया । यूपीए और उसके संगठन राजित कई राज्यों में कई सांप्रदायिक दंगे हुए। लोग वही पुराने घिसे–पिटे पटकथा पर आधारित भाषणों, जिसमें केवल पुरानी बातें थी व वादों को पूरा करने की कोई बात नहीं होती थी, से तंग आ चुके थे। राहुल गांधी ने संसद के शायद ही किसी सत्र में भाग लिया हो तथा राष्ट्रीय आपदा के समय में भी वह कभी उपस्थित नहीं हुए। इसके विपरीत नरेंद्र मोदी ने पूर्ण आश्वासन व आत्मविश्वास के साथ विकास का मुद्दा जनता के सामने रखा,यही परिवर्तन भारतीय जनता देखना चाहती थी। उन्होंने गर्व के साथ अपना विश्वास और प्रतिबद्धता संपूर्ण राष्ट्र के सम्मान के लिए दिखाई। हालांकि २००२ के गुजरात दंगो में कांग्रेस ने मोदी को अपराधी दिखाने की पूरी कोशिश की, परंतु १० सालों बाद यह साफ हो गया कि गोधरा रेल नरसंहार में हिंसा भड़काने व हिंसात्मक हत्याकांड में कांग्रेस का बड़ा हाथ था।
पूरे भारत में कांग्रेस के पोस्टरों पर महात्मा गांधी की बड़ी–बड़ी तस्वीरें देखी जा सकती है। परंतु उनके दो महत्वपूर्ण विचार – शराबबंदी और गौहत्या पर रोक, केवल गुजरात में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही देखी गई। अच्छी सरकार के मजबूत रिकॉर्ड के अलावा लोगों के बीच प्रिय नेता बनने का एक और कारण है कि मोदी लोगों के सामने अपने दिल से बोलते हैं जिसके कारण वह स्वाभाविक रूप से लोकप्रिय हैं। वह बहुत गरीब परिवार से आए हैं, उनकी माता घरेलू कामों में मदद करती थी। उनका इतनी ऊंचाई पर पहुंचना जहां वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री हैं, इस बात ने गरीब लोगों के दिल में आशा की नई किरण जगा दी है।
भारतीय समाज में धार्मिक नेताओं, क्रिकेट खिलाडियों और फिल्म अभिनेताओं के प्रति काफी दीवानगी है परंतु गांधी परिवार के लिए कांग्रेस की चापलूसी उससे कहीं अधिक है। ऐसी बात नहीं है कि कांग्रेस ने कभी कोई अच्छा काम नहीं किया, उन्होंने कई कार्यो में प्रगतिशील पहल की है। परंतु उनके द्वारा किए गए गलत कार्यो ने उन सब अच्छे कार्यों की साख को धो दिया। यह समय है, जब इस पुराने महान दल को अपनी नीतियों तथा कार्यों का पुनरावलोकन कर, गांधी परिवार की हां में हां मिलाने की जगह, सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए कार्य करना होगा।
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